बचे रहिए, बदलते रहिए, बढ़ते रहिए – भारतीय दृष्टिकोण

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22 अप्रैल, २०२० को आयोजित किया गया, अपनी तरह का पहला वेबिनार, लगभग १०० मिनट तक चला और यह एसडी प्रोमो मीडिया द्वारा की गई एक बहुत अच्छी पहल है। आने वाले दिनों में, बेहतर संचार के लिए, निश्चित रूप से इसी तरह के कार्यक्रमों का ऑप्टिकल समुदाय द्वारा ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल किया जाएगा।

सिराज बोलार – मुख्य संपादक : विज़नप्लस मैगज़ीन

ऑप्टिकल उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों के वक्ताओं, जिसमें मुख्य रूप से रिटेल विक्रेता शामिल थे, ने अपनी विशेषज्ञ राय देते हुए बताया कि कोरोना COVID 19 लॉकडाउन के बाद इंडस्ट्री की स्थिति को सँभालने के लिए कैसे तैयार होना चाहिए।

हमें यह जानकार ख़ुशी हुई कि लगभग एक हज़ार लोग ‘टाइम टू कम – इंडियन रिटेल आय वेअर मार्केट’ वेबिनार के लिए रेज़िस्टर हुए और और तीन सौ से भी ज़्यादा लोगों ने इसे यू-ट्यूब पर लाइव देखा।

चर्चा में पैनल पर रिटेलर्स की ओर से सुदर्शन बिनानी, संजीव मदान, स्नेहल तुरखिया, प्रग्नेश गंगर और बोमन बरूचा थे जबकि लेंस बिज़नेस के सेक्टर से देवेश गुप्ता और हेम गर्ग मौजूद थे। आशुतोष वैद्य और आकाश गोयल ने आयवेअर प्रोडक्ट्स सप्लायर सेगमेंट का प्रतिनिधित्व किया। नेत्र रोग विशेषज्ञों की ओर से डॉक्टर टी सेंथिल मौजूद थे । एसडी प्रोमो मीडिया के विवेक विक्रम वेबिनार के मॉडरेटर थे।

चर्चा का मुख्य निचोड़ यह था कि ऑप्टिकल रिटेलिंग को नए शकल देते हुए, ग्राहकों से व्यव्हार करते समय स्वच्छता के महत्व पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सुरक्षा और हाउसकीपिंग कर्मचारियों से लेकर मालिकों तक हर किसी के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करना हर रिटेलर के लिए अनिवार्य होना चाहिए। ग्राहकों को गारंटी दी जानी चाहिए कि आपके स्टोर पर जाना उनके स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है। यह भी महसूस किया गया कि आने वाले दिनों में समग्र व्यवसाय को सँभालने के लिए एक नया तरीका अपनाया जाएगा।

मार्केटिंग, ख़ासकर डिजिटल मार्केटिंग द्वारा पुराने ग्राहकों को आकर्षित किया जाना चाहिए और इसमें नए विचारों को लाया जाना चाहिए। सभी पैनलिस्ट्स की आपसी सहमति थी कि ऑप्टिकल व्यवसाय पर कोरोनावायरस और लॉकडाउन का प्रभाव तीन या छह महीने से अधिक रहने वाला है और स्थिति सामान्य होने में अधिक समय लगेगा।

इसके अलावा, यह बहस की गई कि ऑप्टिकल व्यवसाय के पर इसका प्रभाव अन्य व्यवसायों की तुलना में बहुत कम होगा क्योंकि आयवेअर एक ऐसा उत्पाद है जो एक पसंद के बजाय ज़रूरत के रूप में इस्तेमाल किया जानेवाला दैनिक उत्पाद है।

वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए, ऐसे सुझाव दिए गए थे कि व्यापारियों को एक ‘गुड कॉस्ट’ और ‘बैड कॉस्ट’ के बीच के अंतर पर विचार करना चाहिए। जो कर्मचारी ग्राहक व्यव्हार के मानक में सुधार कर सकते हैं उनपर लागत की जानी चाहिए और ग्राहक के घर तक सेवा देने में भी लागत होनी चाहिए- न सिर्फ उत्पादों की डिलीवरी लेकिन ग्राहक के घर पर ही परीक्षण सुविधाएँ प्रदान करना, यह अच्छी लागत यानि ‘गुड कॉस्ट’ का उदाहरण है। दैनिक कारोबार में निष्फल हैं, उनकी लागत कम कर देने यानी ‘बैड कॉस्ट’ को घटाने का यही उचित समय है।

कुछ पैनलिस्ट्स का मानना है कि बिज़नेस में 30 से 40 प्रतिशत तक गिरावट हो सकती है, जबकि दूसरों ने यह सुझाव दिया है कि इस समय का सामना करने के लिए नए उत्पादों को पेश करना अच्छा है जैसे कि प्लेनो चश्मा और सनग्लासेस को सुरक्षात्मक आयवियर की तरह पेश करने से मदद मिलेगी। कुछ पैनलिस्ट्स का मानना है कि प्रीमियम और लक्ज़री उत्पादों की माँग में काफ़ी गिरावट आएगी।

आने वाले दिनों में नकदी प्रवाह को सँभालने के तरीके के विषय पर, लगभग सभी पैनलिस्ट इस बात पर सहमत हुए कि यह एक महत्वपूर्ण विषय है और सुझाव लगभग आम था कि ऑप्टिकल रिटेल विक्रेताओं को जो पहले से ही इन्वेंट्री में है, उसे बेचने पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए, और इसपर नहीं कि वे क्या क्या बेच सकते हैं।

इसका मतलब शायद यह है कि हर ऑप्टिशियन जानता है कि उसकी दुकान में क्या बिकता है और अपने अनुभव के आधार पर उसने यह ख़ुद ही तय करना चाहिए कि उसने कौनसे उत्पाद ख़रीद कर रख लेने चाहिए और बाक़ी पहलुओं पर ध्यान नहीं देना चाहिए। रिटेलर समुदाय को उत्पादों के विक्रेताओं से अधिक समर्थन की आवश्यकता है और ऐसी भुगतान शर्तों का समावेश करना चाहिए जिससे व्यापार को आसानी हो।

एक वक्ता ने ‘मधुमक्खी’ की मानसिकता के बारे में एक दिलचस्प बात बताई कि कैसे मधुमक्खी कचरे के ढेर में फूल ढूँढ लेती है, और इसी सकारात्मकता को अपनाते हुए रिटेलर्स ने इसी स्थिति को देखने का दृष्टिकोण बदल लेना चाहिए। यह एक अच्छा उदाहरण था जिससे बातचीत का मोड थोड़ा और सकारात्मक हो गया था। दरअसल, उसी वक्ता ने एक और उदाहरण देते हुए वर्तमान स्थिति की तुलना पिछले ‘कोरोनावायरस’-यानी नोटबंदी से की जो कुछ साल पहले हुई थी। उस वक्ता ने यह दावा किया कि नोटबंदी ने वास्तव में मुद्रा की आवाजाही में वृद्धि की है और लोगों को इसे निराशावादी दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए और शायद एक तरह की ‘ रिवेंज शॉपिंग’ के लिए तत्पर रहना चाहिए, जहाँ लोग क्वारंटाइन से बाहर आने के बाद खरीदारी करने के लिए उत्सुक हो सकते हैं। और ऑप्टिशियन इसे अपने ग्राहक को पकड़ने के अवसर की तरह देखे ।

एक और स्पीकर द्वारा एक दिलचस्प मुद्दा, मॉल और सड़कों पर खरीदारी के बारे में था। कोरोनावायरस के डर के कारण यह मान लेना चाहिए कि खाने के ठेले और सिनेमाघरों को खोलने में कुछ समय लग सकता है, दुकानों में लोगों का आना-जाना बढ़ सकता है। इसके अलावा, स्पीकर ने लक्ज़री के बारे में एक दिलचस्प बात कही कि लक्ज़री खरीदार के लिए बहुत अधिक प्रभावित नहीं हुआ है, जो उत्पादवह खरीदना चाहता है, वह वास्तव में उसकी ‘आवश्यकताएं’ हैं इसलिए यह श्रेणी अभी भी उनके लक्ज़री सामानों की खरीदारी करती रहेगी।

देखा जाए तो, सारी बातें काफ़ी दिलचस्प थी। और मैं इस तरह की बातचीत अधिक करना चाहूँगा। मुझे यकीन है कि इससे उम्मीद की कोई किरण ज़रूर जग गई है। और मैं चाहता हूँ कि ऑप्टिकल समुदाय इस उम्मीद की किरण को अपनाए और मौजूदा हालात से सीखें और इसे एक सबक की तरह याद रखें।

सुरक्षित रहें। स्वस्थ रहें।

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